हम आपको बता दें कि इंटरनेशनल क्रिकेट में आमतौर तीन ही गेंदों से मैच खेले जाते हैं, ये तीन तरह की गेंदें हैं – कूकाबुरा, मेरठ में बनने वाली एसजी और ब्रिटेन की ड्यूक बॉल्स. टी20 मैचों में कूकाबुरा की सफेद रंग की गेंद इस्तेमाल की जाती है जबकि टेस्ट मैच में लाल रंग की.
भारतीय गेंदबाजों को पसंद नहीं आतीं ये गेंदें
शुरुआती बरसों में तो ये गेंदें हाथ से बनती थीं लेकिन अब पूरी तरह मशीनों से. हालांकि एसजी और ड्यूक बॉल्स अब भी हाथ से बनाई और सिली जाती हैं. कूकाबुरा की खासियत के बारे में अगर किसी भारतीय गेंदबाज से पूछेंगे तो वो मुंह बिचका देगा, क्योंकि इसकी सिलाई बहुत ढीली होती है.बेहद खतरनाक है अंडमान का सेंटिनल द्वीप, नामुमिकन है यहां से जिंदा लौटना
सिलाई ढीली पड़ने लगती है
ये गेंदें 20-25 ओवरों के बाद जब सिलाई ढीली पड़ने लगती है, तो ये स्विंग करने में मददगार हो जाती है. लेकिन स्पिनर्स आमतौर पर इन गेंदों को पसंद नहीं करते, क्योंकि ये स्पिनर्स के लिए मददगार नहीं होतीं. कूकाबुरा की क्रिकेट गेंदें तीन रंगों सफेद, लाल और गुलाबी में बनती हैं, हालांकि क्वालिटी के हिसाब से उनके 50 के करीब मॉडल हैं.
हालांकि कूकाबुरा गेंदों की सिलाई बहुत ढीली होती है
क्या होता है इन गेंदों के अंदर
कूकाबुरा गेंदों में अंदर कार्क और सफेद मोटे धागे का धागे का इस्तेमाल होता है. कार्क को गोल आकार में ढालकर उनके ऊपर सफेद धागों को लपेटकर एक सतह बनाई जाती है. फिर उन्हें चमड़े दो अर्धगोलाकार खोल में डालकर मशीनों से सिला जाता है.
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महंगी गेंदें
ये गेंदें बहुत महंगी होती हैं. आमतौर पर इनके दाम 1200 रुपए से लेकर 2400 रुपए तक होगा. आस्ट्रेलिया के विकेट पर ये गेंदें काफी उछाल भरी तो होती ही हैं और तेज भी आती हैं, इनकी चमक देर तक बरकरार रहती है.
कूकाबुरा गेंद के नाम के पीछे रोचक किस्सा है
क्यों पड़ा कूकाबुरा नाम
वैसे ये आपको ये बता दें कि कूकाबुरा आस्ट्रेलिया और न्यू गिनीया में पाई जाने वाली कठफोड़वा की एक प्रजाति होती है. ये 11-17 इंच लंबा होता है. इन गेंदों का नाम भी कूकाबुरा क्यों रखा गया, ये काफी दिलचस्प है. दरअसल इस कंपनी के संस्थापक एजी थामसन के पास एक पालतू कूकाबुरा बर्ड थी. जिसका नाम जैकी था. जब थामसन स्पोर्ट्स उपकरणों को बनाने की कंपनी खोली तो उसका नाम कूकाबुरा रखा.
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सात देशों में आफिशियल बॉल है कूकाबुरा
ये कंपनी 1890 में शुरू हुई. इसके हॉकी और क्रिकेट से जुड़े खेल सामान 50 से अधिक देशों में लोकप्रिय हैं. पहली बार 1946 में टेस्ट क्रिकेट में कूकाबुरा गेंदों का इस्तेमाल किया गया. इस कंपनी के दुनियाभऱ में 150 कर्मचारी हैं. ये आस्ट्रेलिया का नंबर वन स्पोर्ट्स ब्रांड भी है.
आज की तारीख में टेस्ट खेलने वाले सात देशों में ये आफिशियल गेंद के रूप में इस्तेमाल की जाती है. कंपनी हर साल पांच लाख क्रिकेट बॉल्स बनाती है. कई बड़े बड़े क्रिकेटर इसके ब्रांड एंबेसडर रह चुके हैं
इस धर्म के अनुसार कपड़ों के कारण मोक्ष हासिल नहीं कर सकती औरत
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